Chandrayan-2: चांद के और करीब पहुंचा चंद्रयान-2, जानिए- पता लगाएगा
की ऊंचाई पर जीएसएलवी-मैक 3 रॉकेट से अलग हो गया था और चक्कर लगा रहा था। बुधवार 24 जुलाई को पहली बार उपग्रह को पृथ्वी की अगली कक्षा में भेजा गया था। शुक्रवार को दूसरी बार उसके कक्षा में बदलाव किया गया। छह अगस्त तक अभी और दो बार चंद्रयान-2 की कक्षा (ऑर्बिट) को बदला जाएगा। चंद्रयान-2 पृथ्वी की कक्षा से 14 अगस्त को चंद्रमा की कक्षा की तरफ रवाना होगा। 20 अगस्त को उपग्रह चंद्रमा की कक्षा में प्रवेश करेगा। उसके बाद 31 अगस्त तक वह चांद के चारों तरफ चक्कर लगाएगा। एक सितंबर को विक्रम लैंडर ऑर्बिटर से अलग होकर चांद के दक्षिणी ध्रुव की तरफ बढ़ जाएगा।
सात सितंबर को विक्रम लैंडर दक्षिण ध्रुव पर उतरेगा। विक्रम लैंडर के उतरने के कुछ घंटे बाद रोवर प्रज्ञान त दुनिया का पहला देश होगा। अभी तक चंद्रमा के इस क्षेत्र में कोई देश नहीं पहुंच पाया है।
चंद्रयान-2 पर दुनिया भर की नजर : चांद पर अभी तक तीन देशों रूस, अमेरिका और चीन के मिशन ही र अपना मानव मिशन भेजने वाला है, इसलिए उसे चंद्रयान-2 से मिलने वाली जानकारियों का बेसब्री से इंतजार है, ताकि उसके हिसाब से वो अपने मिशन में बदलाव कर सके।
क्या-क्या पता लगाएगा : भारत के पहले मून मिशन चंद्रयान-1 से चांद पर पानी होने का पता चला था। अब चंचंद्रयान-2 यह भी पता लगाएगा कि वहां किस हिस्से में और कब-कब रोशनी होती है और कब-कब अंधेरा छाया रहता है।
चंद्रयान 2 सफल रहा तो भारत को क्या मिलेगा
भारत का चाँद पर यह दूसरा मिशन है. भारत चाँद पर तब अपना मिशन भेज रहा है जब अपोलो 11 के चाँद मिशन की 50वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है.
भारत का चंद्रयान-2 चाँद के अपरिचित दक्षिणी ध्रुव पर सितंबर के पहले हफ़्ते में लैंड करेगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि चाँद का यह इलाक़ा काफ़ी जटिल है. वैज्ञानिकों के अनुसार यहां पानी और जीवाश्म मिल सकते हैं.
मुंबई स्थित थिंक टैंक गेटवे हाउस में 'स्पेस एंड ओशन स्टडीज' प्रोग्राम के एक रिसर्चर चैतन्य गिरी ने वॉशिगंटन पोस्ट से कहा है, ''चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर कोई अंतरिक्षयान पहली बार उतरेगा. इस मिशन में लैंडर का नाम
इसरो का कहना है कि अगर यह मिशन सफल होता है तो चंद्रमा के बारे में समझ बढ़ेगी और यह भारत के साथ पूरी मानवता के हक़ में होगा.
इसरो प्रमुख के सिवन ने एनडीटीवी से कहा है कि विक्रम के लिए लैंड करते वक़्त 15 मिनट का वो वक़्त काफ़ी जटिल है और इतने जटिल मिशन को कभी अंजाम तक इसरो ने नहीं पहुंचाया है.
भारत ने इससे पहले चंद्रयान-1 2008 में लॉन्च किया था. यह भी चाँद पर पानी की खोज में निकला था. भारत ने 1960 के दशक में अंतरिक्ष कार्यक्रम शुरू किया था और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एजेंडे में यह काफ़ी ऊपर है.
भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम की आलोचना भी होती है कि क्या एक विकासशील देश को देश के संसाधनों को अंतरिक्ष कार्यक्रम पर खर्च करना चाहिए जहां लाखों लोग भूख और ग़रीबी से जूझ रहे हैं.
विक्रम साराभाई को भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम का जनक कहा जाता है और उन्होंने इन आलोचनाओं के जवाब में कहा था, ''अंतरिक्ष प्रोग्राम का देश और लोगों की बेहतरी में सार्थक योगदान है. भारत को चाहिए कि समाज और लोगों की समस्या को सुलझाने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करे.''
भारत के पहले मार्स सैटलाइट की लागत स्पेस विज्ञान पर बनी फ़िल्म ग्रैविटी से भी कम थी. चंद्रयान-2 की लागत 14.1 करोड़ डॉलर है जो कि अमरीका के अपोलो प्रोग्राम की लागत 25 अरब डॉलर से कम है.
चंद्रयान-2 भारत की चाँद की सतह पर उतरने की पहली कोशिश है. इससे पहले यह काम रूस, अमरीका और चीन कर चुका है. चार टन के इस अंतरिक्षयान में एक लूनर ऑर्बिटर है. इसके साथ ही एक लैंडर और एक रोवर
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